Monday, January 24, 2011

लाल बत्ती की दास्ताँ.








आज एक बार फिर कोहरे की सफ़ेद चादर से झांकती सुन्हेरी किरणे सुबह को और भी सुरमई बना रही थी। एक और जहा पक्षियों की चेहचाहट से वातावरण और भी संगीतमयी हो रहा था और ताज़ा पुष्प लताएं भीनी भीनी खुशबू हवा में बिखरा के एक नए दिन का स्वागत कर रही थी वही दूसरी और दौड़ती भागती दुनिया भी कम हसीन नहीं थी। सभी लोग जल्दी में सडको पे अपनी गाडी दौड़ाते नज़र आ रहे थे । किसी को दफ्तर पहुँचने की जल्दी तो किसी को बच्चे को स्कूल बस में चढ़ाना है। किसी को कॉलेज पहुँचने की जल्दी मगर रास्ते में जाम इतना की ये तो पक्का निश्चय हो जाये की घर से समय पर निकलने के बावजूद भी पहली क्लास में देरी से पहुंचना तो तेय है, और अगर अध्यापक जी ने कक्षा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी तो पहली क्लास तो मिस करनी पड़ेगी और इसका नतीजा होगा अटेंडेंस शोर्ट..फिर भी भुगतान तो हमे ही करना पड़ेगा। खैर ये तो हुई आपकी और हमारी बात।
इस सुहानी सुबह के सफ़र में और कोई भी है जिसे हम सबसे भी ज्यादा तकलीफों का सामना करना पड़ता है। आप सोच रहे होंगे ऐसा कौन है भाई ? तो आईये आपका परिचय करवाते है एक लाल बत्ती से। जी हाँ ये लाल बत्ती ही है जिसे दिन भर आप और हम सबसे ज्यादा तकलीफों का सामना करना पड़ता है। आज आपके समक्ष एक लाल बत्ती की दास्ताँ प्रस्तुत करने जा रही हूँ।

ये कहानी है उसी लाल बत्ती की जो नॉएडा सेक्टर ५५ में होटल पार्क प्लाज़ा के बिलकुल सामने है। पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ , इमानदारी से बिना थके , बिना आराम किये अपना फ़र्ज़ अदा करती नज़र आती है ये लाल बत्ती। सड़क पर आते जाते वाहनों को निर्देश देती नज़र आती है ये लाल बत्ती, मगर फिर भी इसे रोज़ एक असहाए पीड़ा को सेहेन करना पड़ता है । ये लाल बत्ती सड़क पे आते जाते वाहन चालको को उपयुक्त निर्देश देने के साथ एक आशा भरी नज़रो से लोगो को निहारती रहती है की शायद आज तो कोई इसकी तरफ ध्यान देगा..इसके द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करेगा । दरअसल ये लाल बत्ती २४*७*३६५ चालू रहती है मगर अफ़सोस की इसके द्वारा दिए गए निर्देशों की अहेमियत किसी को नज़र नहीं आती, क्योकि इस सड़क से गुजरने वाले वाहन चालक कभी इस लाल बत्ती के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन ही नहीं करते और गाडी को सरपट फर्राटे से दौड़ाते हुए आगे निकल जाते है।

अगर कोई वाहन चालक लाल बत्ती होने पर एक सेकंड रुकता भी है तो वो भी एक दुसरे की देखा देखि में नियमो का उल्लंघन करने में नहीं हिचकिचाते। ये दास्ताँ केवल इसी लाल बत्ती की नहीं है। देश में न जाने कितनी लाल बत्तिया इसी तरह का अनुभव कर रही है। अब आप ही सोचिये अगर आप किसी के भले के लिए उसे कोई निर्देश दे और वो आपकी तरफ एक पल को भी ध्यान न दे तो आप कैसी अनुभव करेंगे?

कहते है - दुर्घटना से देर भली। इसीलिए हम सबको मिल के एक प्रण लेना चाहिए की त्रफ्फिक सिग्नल की अनदेखी और नियमो का उल्लंघन जैसी गतिविधियों को रुकने के लिए एकजुट हो इन्हें रोकने का प्रयास करेंगे



Friday, December 31, 2010

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना

यू ही गुज़र जायेंगे बारह महीनो के बावन ये हफ्ते
कभी याद करना , कभी याद आना
खयालो में बस यूं ही गुनगुनना
यही है मेरे ह्रदय की भावना
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामना।
आने वाला साल २०११ आप सब की ज़िन्दगी सफलता और खुशियों से भर दे।

Tuesday, April 6, 2010

क्या ऐसे तरक्की करेगी भारतीय रेल ??


भारतीय रेल- दुनिया की चौथी सबसे बड़े पैमाने पर चलने वाली रेल सेवा। ये वो भारतीय रेल है जो प्रतिदिन २० मिल्लियन यात्रियो को उनकी मंजिल तक सुरक्षित पहुंचाती है। २ मिल्लियन टन माल दैनिक पैमाने पर उचित स्थानों पर पहुंचाती है और लगभग १.६ मिल्लियन नागरिको को रोज़गार प्रदान करती है।

इन सब उपलब्धियों के अलावा यदि इस चमकते सिक्के को पलट के इसका दूसरा पहलु देखा जाये तो एक धूमिल दृश्य उभर के सामने आता है। आप के समक्ष एक व्यक्तिगत अनुभव का विस्तार पूर्वक लेखन कर रही हूँ।

बात ०३ अप्रैल २०१० की है। मेरे एम्.एस सी के फ़ाइनल इम्तिहान ख़तम हुए तो मन में विचार आया की छुट्टियों में घर हो आती हूँ। मैंने आखिरी इम्तिहान दे कर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस(८२३७) से यमुना नगर आने का कार्य क्रम बनाया। ये गाडी गाजिआबाद से रात्री ९:०० प्रस्थान करती है।

मै गाडी क निर्धारित समय अनुसार ठीक ८:३० मिनट पर गाजिआबाद रेलवे स्टेशन पहुँच गयी। वह जा कर पता चला की गाडी १५ मिनट की देरी से आएगी। मै इसी सोच में डूब कर गाडी का इंतज़ार करने लगी की आखिर ये भारतीय रेल कभी निर्धारित समय क अनुसार क्यों नहीं चलती? ख़ैर १५ मिनट गुज़र चुके थे तब भी गाडी लापता।

अब रात के पौने दस बज चुके थे । तभी एक घोषणा हुई की ८२३७ छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस कुछ ही समय में प्लेट फॉर्म नंबर १ पर आ रही है। ये सुन कर दिल को बड़ी राहत मिली की चलो गाडी चाहे ४५ मिनट की देरी से आई कम से कम आई तो सही। मुझे २- ४ घंटे तो इंतज़ार नहीं करना पड़ा।

मैंने ट्रेन के भीतर प्रवेश कर अपना स्थान ग्रहन किया और निद्रा की आवस्था को प्राप्त करने के प्रयास में जुट गयी। लगभग १ घंटे का सफ़र तय करने के बाद गाडी मेरठ शेहर पहुंची। वहाँ गाडी को ३० मिनट का स्टॉप दिया गया। फिर १०-१५ मिनट आगे का सफ़र तय करने के बाद गाडी को १:३० घंटा मेरठ छावनी में रोके रखा गया। लगभग १:३० घंटे बाद गाडी को मेरठ छावनी से चलाया गया तो सिलसिला कुछ यू चला की क्या बताओं। गाडी मुश्किल से १० मिनट चलती होगी फिर उसे कभी २५ मिनट तो कभी १० मिनट के लिए जगह जगह रोक दिया जाता। मेरठ छावनी से मुज्ज़फरनगर तक यही खेल चलता रहा।

दरअसल इस घटना के पीछे कारण ये था की जिस रास्ते से छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस नयी
दिल्ली से अमृतसर को जाती है वो सिंगल ट्रैक रूट है। ये वही रूट है जो नयी दिल्ली को अम्बाला से मेरठ - मुज्ज़फर नगर के रास्ते जोड़ता है। इस रूट के सिंगल ट्रैक होने की वजह से छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से ५ गाडियों को पास दिलाया गया। जिसके कारण जो छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस गाजिआबाद से यमुना नगर तक का सफ़र ५ घंटे में तय करती है उसे यही सफ़र तय करने में ८ घंटे का समय लगा।

ऐसे में सवाल यह उठता है की जब ये दिल्ली अम्बाला रूट इतना व्यस्त रूट है तो इसे डबल ट्रैक रूट क्यों नहीं बनाया जाता? इस से भी ज्यादा चोकाने वाली बात तो ये है की इसी सिंगल लाइन रूट की विद्युतीकरण का काम भी तेज़ी से चल रहा है।

अब प्रश्न उठता है की क्या हमारी देश की प्रशासन इतनी नासमझ है की ये निर्णय भी न ले सके की किस जगह किस समय कौन सा काम होना चाहिए ? क्या हमारे देश में भ्रष्ट अधिकारियों की आँखों पर काली पट्टी इस तरह बंधी हुई है की उन्हें देश की जनता की ज़रूरत दिखाई ही नहीं देती? क्या उन्हें विद्युतीकरण की जगह रूट को डबल ट्रैक करने की आवश्यकता महसूस नहीं होती? क्यों सिंगल लाइन ट्रैक के विद्यितुकरण प्रक्रिया में देश का पैसा पानी की तरह बहा कर बर्बाद किया जा रहा है?

क्यों अपनी आँखों पर काली ओढनी ओढ़े बैठा है प्रशासन ? क्यों नहीं कोई उचित कार्यवाही होती? क्यों नहीं जमाखोरों के खिलाफ सख्त कदम उठाये जाते? क्यों अपने वर्चस्व को और दाग दार और छवि को धूमिल बनाना चाहते है देश के अधिकारी? क्यों नहीं पूरी की जाती करोडो नागरिको की उम्मीदे? इन्ही मुश्किलों का सामना करती रहे आम जनता आखिर कब तक ? इन बद से बदतर होते हालातो से लडती रहे आम जनता आखिर कब तक?

अब आप ही बताइए अगर देश का प्रशासन यूं ही आलस की गहेन निद्रा में सोता रहा और भ्रष्ट अधिकारी पैसे से अपनी भूख मिटाते रहे तो क्या कभी भारतीय रेल कभी तरक्की कर पायेगी? क्या भारतीय रेल कभी तय वक़्त सीमा पर चल पायेगी? क्या भारतीय रेल कभी करोडो लोगो की आशाओं को पूरा कर पायेगी?

जीवन की राह.

zindagi ek safar hai, safar kade sangharsh ka.
safar mushkilo aur pareshaniyo ka
safar adbhoot sachaiiyo ka
safar saikdo uchaiiyo aur gehraiyo ka
safar anokhi uplabdhiyo ka, ek safar anginat bulandiyo ka.

jeevan k isi safar ko kuch shabdo ki shrinkhla me piroya hai--

nain tikaye manzil par
chala ja raha jaise raahi
kadi dhoop me dekh ke chaya ki parchayi
ruk k na leta angdayi
jeevan naam hai sangharsh ka,
utsah aur umang ka
badi badi kathinaiya aati
kadi kadi chunotiya darshati
aage aage badhna hai rahi to himmat hare mat baitho.

raah pakad kar manzil ki, us par tu chala chal raahi
na rakh aas saralta ki, na ghabra asafalta se raahi,
makdi jab jab jaal chadhi
jaane kitni baar giri
koshish karti rahi akeli
manzil tak pahunchi wo thakeli
himmat aur vishwaas dharo
mehnat aur prayass karo
man ko na dukhi na niraash karo
sukh dukh hai jeevan k pehlu
har padav himmat se paar karo.

nisha lati hai ghana andhera
uske baad hota jag me savera
mann me khushi aur muskaan bikhero
kal subah k pal kaise honge kis ko khabar
inhi lamho me piro lo khushiyo ki yaade amar.


kehta hai ye rahi tumko-
khud me tum vishwaas dharo ,chunotiyo ko sweekar karo
mann ko himmatwan karo
bharpoor prayaas karo

aatmvishwaas aur himmat ko badha e raahi jo karte kamzori kam
kadam safalta chumegi na rahengi aankhein nam.
uche unche sapne dekho fir unko saakar karo.

nain tikaye manzil par chala ja raha jaise rahi, chala ja raha jaise rahi

Saturday, November 7, 2009

इस ब्लॉग पर प्रकाशित किसी भी संदेश के बारे में आप के व्यक्तिगत विचार और सुझाव सादर आमंत्रित है।

लाचार बचपन- क्या जीना इसी का नाम है?



ये फोटो शोप्प्रिक्स मॉल मॉल के बाहर घूमते एक नन्हे बच्चे की है । इसकी मासूम निगाहे और कोमल मुस्कान सबको एक साधारण सी बात लगेगी। परन्तु

वास्तव में यही मुस्कान हमे एक अहम् संदेश और प्रेरणा देती है, की जीवन में मनुष्य कैसी भी परिस्थिति में क्यो न हो परन्तु उसे हिम्मत और धैर्य से परिस्थितियों का सामना करना चाहिए। इस मासूम मुस्कान के पीछे छिपी एक लाचारी भरी हकीक़त को प्रकाश में लाना चाहती हूँ।असल में यह फोटो मैंने उस वक्त ली है जब मैं दोस्तों के साथ शोप्प्रिक्स मॉल घुमने गई और वह ये देखा की यह एक बच्चा वह आते जाते लोगो से पैसे मांगता था । पहली नज़र में यह एक आम गतिविधि प्रतीत होती है । परन्तु एक असाधारण घटना तब प्रतीत हुई जब मैंने ये देखा की ये बच्चा अपनी मर्ज़ी से भीख नही मांग रहा था बल्कि एक २३-२४ वर्ष के व्यक्ति के निर्देशन में रहकरमांग रहा था जी इसे एक व्यक्ति से पैसा न मिलने पर दूसरे से भीख मांगने के लिए निर्देशित करता था ।

आज भले ही हम ख़ुद को २१वी सदी के नागरिक समझते है परन्तु आज के युग में भी समाज में न जाने कितने ही कुकर्म हो रहे है । जहाँ समाज के एक वर्ग के बच्चे अपना बचपन तमाम खुशियों के साथ जीते है , उसी बचपन का एक दूसरा पहलु लाचारी भरे बचपन के रूप में उभर कर सामने आता है । आज कल कुछ समाज में कुछ दूषित तत्वों के कारन समाज में बचपन भी प्रदूषित होता नज़र आता है। जब ऐसे ही न जाने कितने कितने बच्चो के विद्यालय जा कर अपना भविष्य उज्जवल बनाने के समय पर सरे आम कनूजं का उल्लंघन कर भीख मांगने जैसे घिनोने काम करवाए जाते है और कितने ही मासूम बच्चो का भविष्य बर्बाद किया जा रहा है लेकिन आज कल भी प्रशासन गहरी नींद में सोता नज़र आ रहा है। आज भी दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध कोई भी कार्यवाहीहोती नही दिखती। जब आज भी समाज में ऐसी तमाम बुराईया यहाँ तहां देखने को मिलती है फ़िर भी क्यो सोया है प्रशासन?????

इस masski

Friday, October 30, 2009

hi welcome to my world